Monday, January 31, 2011


वैसे सोचने की बात है कि हमारे पूर्वजो ने आने वाली पीढी को खुश देखने के लिए बस कंधो पर एक ही बोझ उठाया और वो था भारत को स्वतंत्र करवाना. उसमे वो कामयाब भी हुए.अब सोचने की बात है कि क्या आज हमारे कंधो पर भी कोई बोझ है. जी हाँ ,बिल्कुल है.औरो का तो पता नही पर मोबाईल का बोझ बहुत है कंधो पर. कभी गाडी चलाते समय, कभी आफिस मे... या फिर कभी कुछ काम करते हुए हमारे कंधे मोबाईल के बोझ से ही झुके जा रहे हैं और आखे शर्म से कि हम आने वाली पीढी को क्या नया दे कर जा रहे है...

कमाल करते है जी आप.गुस्सा और हममे.मतलब ही नही कि गुस्सा हमारी नाक पर बैठा रहता है.असल मे वो क्या है ना कि हम सोचते है कि आफिस जाकर घर के तनावो से आजादी मिलेगी पर वहाँ भी टेंशन.पहले ट्रैफिक जाम फिर बेवजह बिजली कट,बास की डाटं,रुबी का कुछ समय से काम पर ना आना बस भेजा फ्राई करता है.अब गुस्सा तो अपने लोगो पर ही निकालेगे ना....इसलिए घर पहुचते ही घरवालो पर चिल्लाना शुरु.पर गुस्सैल नही है हम..

सब कुछ ठीक चल रहा था पता नही आज अचानक से आखोँ के आगे धुंधला सा छाने लगा.कोई राह नही सूझ रही है कि क्या करें, कौन सी दिशा मुडे.ऐसा ही कुछ साल पहले भी हुआ था पर वो समय निकल गया था.पर अब दिल भी बैठा जा रहा है और हाथ भी कापँने लगे है पैन तक भी पकडा नही जा रहा है.अरे हैल्लो, क्या हुआ.यहाँ धुंध और ठंड् की बात हो रही है कि ...क्या करे. इससे कैसे बचे. पारा लगातार गिरता ही जा रहा है.और आप भी क्या सोचने लगे ... .

कमाल है कल तक जो नाराज थे कि फेसबुक मत करो आज वो ही, जी हाँ, वो ही पीछे पडे है कि फेसबुक करो. हैरानी है पर सच है. असल मे सोच लिया था कि नए साल से फेसबुक बंद.क्या फायदा सभी नाराज रहते है कि सारा दिन इसी से चिपके रहते हो.इसलिए आज नेट बंद करके थोडा ध्यान बच्चो की पढाई पर दिया,छोटी बहन का इतना मोबाईल बिल का राज पूछा. काम व...ाली को गंदा काम करने और दूध वाले को बेकार दूध लाने के लिए डांटा तो सभी पीछे पड गए कि फेसबुक करो ना आप किस झमेले मे पड रहे हो.अब अंधा क्या चाहे दो आखें ही ना. आज के बाद से कोई रोक टोक नही.हा हा .

समय बहुत तेजी से बदल रहा है.अब मरने से पहले कैदी की आखिरी इच्छा तरबूज खाना है तो कोई परेशानी नही क्योकि अब 12 महीने हर तरह का फल मिलता है या विदेश मे रहने वाली दोस्त से आखिरी बार बात की भी इच्छा रखे तो भी कुछ पल मे ही हो जाएगी. कोई हैरानी नही होगी कि कुछ साल बाद प्याज म्यूजियम मे ही देखने को मिलेगा.खुले मैदान की तस...्वीरे ही रह जाएगी कि ऐसे मैदान कभी हुआ करते थे या एक समय ऐसा भी था जब लोग आपस मे मिल बैठ कर बाते किया करते थे...

यकीन नही पर ये सच है कि आज के समय मे मायने बदलते जा रहे हैं.देखिए ना पहले पहल अगर कोई हमे इडियट कहता था तो हमे बुरा लगता पर आज के समय मे ये शब्द सुन कर खुशी का अहसास होता है कि हममे भी दम हैं.टीवी की बात करे तो पहले इसे idiot box के नाम से जानते थे पर आज देख लो बडे से बडा स्टार, सुपर स्टार अपनी पब्लिस्टी के लिए बस टीवी... मे आने के लिए बैचैन है.समझ नही आ रहा कि वो अभी भी इडियट बाक्स है या हम ही इडियट है या बन रहे हैं या बनाए जा रहे हैं ....

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