Thursday, February 17, 2011


वाह जी वाह ... विदेश मे ही सही रिक्शा का आनंद तो उठाया हमारे क्रिकेटरो ने.एक बार तो इन्हे ऐसा आते देख बहुत हैरानी हुई. वैसे एक समय था जब रिक्शा भी स्टेट्स सिम्बल समझा जाता था. आज कल तो हमारी डूबती संस्कृति को बढावा देने के लिए बडे शहरो मे मेलो या लाईट एंड् साऊंड का आयोजन किया जाता है और उसमे हमारी संस्कृति की झलकियाँ दिखाई जाती है भले ही इनका प्रवेश शुल्क बहुत मंहगा हो पर लुप्त होती संस्कृति की भारी कीमत तो चुकानी ही पडेगी.जय हो

गरीबी मे आदमी मजबूरन सादी जिंदगी गुजारता है और अमीरी मे उसका डाक्टर सादी जिंदगी गुजारने पर मजबूर कर देता है .... है ना ..

किसी व्यक्ति के लिए किसी चीज को छोड दो पर किसी चीज के लिए किसी व्यक्ति को कभी नही छोडना चाहिए ....

हार तब नही होती जब हम कोई मुकाबला हार जाते है बल्कि तब होती है जब हम लडना छोड देते हैं ...

जिंदगी ऐसे ना जियो की लोग "फरियाद" करे... बल्कि जिंदगी ऐसे जियो की लोग" फिर याद" करें ....

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