Monday, May 9, 2011

माँ की अल्मारी …… कविता
कमरे मे माँ की अलमारी नही
अल्मारीनुमा पूरा कमरा है
जिसमे मेरे लिए सूट है
पिंटू के लिए खिलौना है
...इनके लिए परफ्यूम है
मणि के लिए चाकलेट है
एक जोडी चप्पल है
सेल मे खरीदा आचार,मुरब्बा और मसाला है
बर्तनो का सैट है
शगुन के लिफाफा है
जो जो जब जब याद आता है
वो इसमे भरती जाती हैं
ताकि मेरे आने पर
कुछ देना भूल ना जाए
सच, ये अल्मारी नही
अल्मारीनुमा पूरा कमरा है

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